सुप्रीम कोर्ट ने कहा: मेधावी छात्र को दाखिला देने से नहीं किया जा सकता इनकार

कोर्ट करेगा मेघावी छात्र के लिए दाखिले के प्रबंध


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी मेधावी और योग्य छात्र को बगैर उसकी गलती के दाखिला देने से इनकार किया जाता है तो कोर्ट उस छात्र को प्रवेश देने का आदेश दे सकता है। कोर्ट उस छात्र के लिए या तो सीटों की संख्या बढ़ा सकता है या मेरिट लिस्ट में सबसे नीचे वाले छात्र का दाखिला रद्द कर सकता ह।


कोर्ट ने कहा कि मौजूदा सत्र की कट-ऑफ तारीख (30 सितंबर) खत्म होने की स्थिति में छात्र को अगले सत्र में प्रबंधन कोटे से दाखिल दिया जा सकता है। ऐसी स्थिति में छात्र को दाखिले के अलावा मुआवजा भी दिया जा सकता है।

दरअसल, जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने एमबीबीएस में प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ही दो विरोधाभासी फैसलों का निपटारा करते हुए यह आदेश दिया। बेंच ने कहा, अगर किसी मेधावी छात्र को बिना उसकी गलती दाखिला देने से इनकार किया जाता है और वह समय पर कोर्ट का दरवाजा खटखटाता है तो उसे उचित राहत न देना न्याय को नकाराने जैसा होगा।

पीठ ने 2014 के उस फैसले को दरकिनार कर दिया जिसमें कहा गया कि ऐसे छात्र को राहत के तौर पर सिर्फ मुआवजा दिया जा सकता है। पीठ ने कहा कि यह सही न्याय नहीं। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। किसी मेधावी छात्र के लिए मेडिकल कोर्स में दाखिला लेना उसकी जिंदगी का अहम मोड़ है। ऐसे में बिना उसकी गलती के दाखिला नहीं देना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। मुआवजा अतिरिक्त उपाय जरूर हो सकता है लेकिन यह उचित उपाय नहीं हो सकता है।

इन सवालों का करना था निपटारा


पीठ को इस सवाल का निपटारा करना था कि अगर कोई मेधावी छात्र बिना देरी कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करता है तो कट ऑफ की तारीख निकलने के बाद क्या उसे दाखिला देने से इनकार किया जा सकता है और क्या ऐसे छात्रों के लिए महज मुआवजा ही एकमात्र विकल्प है?

पहले दो अलग-अलग दिए गए थे फैसले


2012 में कोर्ट ने कहा था कि कट ऑफ तारीख निकलने के बाद अपवाद के तौर पर छात्र को दाखिला देने का निर्देश दिया जा सकता है। वर्ष 2014 में कोर्ट ने कहा कि छात्र को महज मुआवजा दिया जा सकता है।